फीनिक्स उत्तराखंड : एक चिंतन
मध्य जून में हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में हुई भौगौलिक व मानवीय त्रासदी संभवत: मध्य हिमालय के सम्पूर्ण इतिहास में भीषणतम है क्योंकि पश्चिम में हिमाचल के किन्नौर जिले से लेकर पूर्व में उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जिले तक हर बड़ी नदी घाटी शायद ही कभी एक साथ इतनी अधिक त्रासक रूप से जख्मी हुई हो।
त्रासदी की गहनता, व्यापकता और उसको लेकर बनी हुई अनिश्चितता से हम सब एक तरह से हतप्रभ हैं। यह त्रासदी गहरी है, इतना तो हम समझ रहे हैं; इसका असर लम्बे समय तक रहने वाला है, इसका भी हमें आभास हो रहा है और यह भी तय है कि इस त्रासदी और उसके निरंतर गंभीर हो रहे परिणामों को लेकर हम व्यक्तिगत अथवा सामाजिक स्तर पर अपनी भी भावी भूमिका की ज़रुरत मानते हैं। लेकिन इस त्रासदी की विभिन्न परतें व व्यापक आयाम - राजनैतिक, सामाजिक, नीतिगत, मानवीय, व्यवसायिक, आदि - आज भी दैनिक स्तर पर खुल रहे हैं, तो हमारी तात्कालिक व दीर्घकालिक भूमिका का स्वरुप क्या होगा, यह हम अभी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। भावनाओं का वेग है और मन में सवालों व संशयों का भी एक जाल है।
"फीनिक्स उत्तराखंड" ब्लॉग वास्तव में उत्तराखंड की इस गहनतम त्रासदी को देखनें-समझने की एक कोशिश है। ये इस उम्मीद के साथ कि आने वाले समय में हिमालय, उत्तराखंड और पहाड़ों मैं बसे अपने लोगों के पुनरुथान में हम अपनी भी कोई स्पष्ट व सार्थक भूमिका तय कर सकें।
ग्रीक मिथक में, फीनिक्स एक स्वर्ण और लाल पंखों वाली पक्षी है। अपने जीवन चक्र के अंत में वह अपने लिए एक विशेष घोंसला बना कर, उसमे बैठ कर, उसे जला देती है। घोंसला और पक्षी दोनों जल कर राख हो जाते हैं। उस राख से एक नव-फीनिक्स उठती है, और उसका पुनर्जन्म - नव-सृजन - होता है।
फीनिक्स, अमरत्व और अपराजयता की प्रतीक है।
मध्य जून में हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में हुई भौगौलिक व मानवीय त्रासदी संभवत: मध्य हिमालय के सम्पूर्ण इतिहास में भीषणतम है क्योंकि पश्चिम में हिमाचल के किन्नौर जिले से लेकर पूर्व में उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जिले तक हर बड़ी नदी घाटी शायद ही कभी एक साथ इतनी अधिक त्रासक रूप से जख्मी हुई हो।
त्रासदी की गहनता, व्यापकता और उसको लेकर बनी हुई अनिश्चितता से हम सब एक तरह से हतप्रभ हैं। यह त्रासदी गहरी है, इतना तो हम समझ रहे हैं; इसका असर लम्बे समय तक रहने वाला है, इसका भी हमें आभास हो रहा है और यह भी तय है कि इस त्रासदी और उसके निरंतर गंभीर हो रहे परिणामों को लेकर हम व्यक्तिगत अथवा सामाजिक स्तर पर अपनी भी भावी भूमिका की ज़रुरत मानते हैं। लेकिन इस त्रासदी की विभिन्न परतें व व्यापक आयाम - राजनैतिक, सामाजिक, नीतिगत, मानवीय, व्यवसायिक, आदि - आज भी दैनिक स्तर पर खुल रहे हैं, तो हमारी तात्कालिक व दीर्घकालिक भूमिका का स्वरुप क्या होगा, यह हम अभी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। भावनाओं का वेग है और मन में सवालों व संशयों का भी एक जाल है।
"फीनिक्स उत्तराखंड" ब्लॉग वास्तव में उत्तराखंड की इस गहनतम त्रासदी को देखनें-समझने की एक कोशिश है। ये इस उम्मीद के साथ कि आने वाले समय में हिमालय, उत्तराखंड और पहाड़ों मैं बसे अपने लोगों के पुनरुथान में हम अपनी भी कोई स्पष्ट व सार्थक भूमिका तय कर सकें।
ग्रीक मिथक में, फीनिक्स एक स्वर्ण और लाल पंखों वाली पक्षी है। अपने जीवन चक्र के अंत में वह अपने लिए एक विशेष घोंसला बना कर, उसमे बैठ कर, उसे जला देती है। घोंसला और पक्षी दोनों जल कर राख हो जाते हैं। उस राख से एक नव-फीनिक्स उठती है, और उसका पुनर्जन्म - नव-सृजन - होता है।
फीनिक्स, अमरत्व और अपराजयता की प्रतीक है।
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