जनसत्ता - 16 जुलाई 2013
उत्तराखंड मे आये जल प्रलय से हुई तबाही का एक माह बीत चुका है लेकिन राज्य के हालत अभी जस के तस हैं। प्रदेश सरकार के सामने प्रभावित इलाकों तक राहत पहुँचाना ही केवल एक समस्या नहीं है बल्कि 5748 गुमशुदा लोगों की तलाश, मुआवजा या आर्थिक सहायता और राहत सामग्री बाँटना, केदारनाथ से शवों को निकालना और मलबा साफ़ करना, पुनर्वास और पुनर्निर्माण करना और चार-धाम यात्रा दोबारा शुरू करना भी किसी हिमालय से कम नहीं है।
इस आपदा के बाद केंद्र सरकार ने सेना, वायुसेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की मदद से करीब 1 लाख 17 हज़ार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला।
20 वायुसेना कर्मियों व अन्य बलों के जवानों को भी अपनी जान गवानी पड़ी।
एशियाई विकास बैंक व अन्य संस्थाओं से 6-7 हज़ार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय सरकार ने एक हज़ार करोड़ देने की बात कही है।
राज्य में आपदा राहत मंत्री यशपाल आर्य का मानना है कि 240 गाँव के पुनर्वास की ज़रुरत है।
केंद्र ने सीमा सड़क संगठन को सडकों के पुनर्निर्माण के लिए 300 रुपये स्वीकृत किये हैं।
उत्तराखंड मे आये जल प्रलय से हुई तबाही का एक माह बीत चुका है लेकिन राज्य के हालत अभी जस के तस हैं। प्रदेश सरकार के सामने प्रभावित इलाकों तक राहत पहुँचाना ही केवल एक समस्या नहीं है बल्कि 5748 गुमशुदा लोगों की तलाश, मुआवजा या आर्थिक सहायता और राहत सामग्री बाँटना, केदारनाथ से शवों को निकालना और मलबा साफ़ करना, पुनर्वास और पुनर्निर्माण करना और चार-धाम यात्रा दोबारा शुरू करना भी किसी हिमालय से कम नहीं है।
इस आपदा के बाद केंद्र सरकार ने सेना, वायुसेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की मदद से करीब 1 लाख 17 हज़ार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला।
20 वायुसेना कर्मियों व अन्य बलों के जवानों को भी अपनी जान गवानी पड़ी।
एशियाई विकास बैंक व अन्य संस्थाओं से 6-7 हज़ार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय सरकार ने एक हज़ार करोड़ देने की बात कही है।
राज्य में आपदा राहत मंत्री यशपाल आर्य का मानना है कि 240 गाँव के पुनर्वास की ज़रुरत है।
केंद्र ने सीमा सड़क संगठन को सडकों के पुनर्निर्माण के लिए 300 रुपये स्वीकृत किये हैं।
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