Saturday, 3 August 2013

Self-reliance, the key to Survival and Revival

आत्म-निर्भरता, पुनरुथान का मूलमंत्र है 

कोई भी समाज, समुदाय, परिवार या व्यक्ति ही किसी भी मुश्किल, हादसे या त्रासदी से पूरी तरह उबर नहीं सकता अगर वो आत्म-निर्भर न हो; अगर वो खुद उबरने की कोशिश न करे; अगर उसे खुद अपने हाथ-पाँव पर विश्वास न हो.

किसी भी त्रासदी में सरकार द्वारा  हर तरह की मदद, प्रभावित लोगों का अधिकार है और सरकार को यह करना ही है. लेकिन पिछले कुछ दशकों से, ऐसे हादसों में सरकार द्वारा सहायता की जो प्रक्रिया और स्वरुप रहे  हैं,  उन्होंने समाज को भ्रष्ट और निकम्मा बनाने का ही ज्यादा काम किया है. सरकार द्वारा जनित व प्रोत्साहित लोगों की पराश्रयता  का एक उदाहरण कई बार मिलता है कि घर गिर गया  है तो कई-कई दिन तक घर के लोग एक भी गिरा पत्थर हटाते या साफ़ नहीं करते और महज इसलिए कि सरकार से कोई आएगा, नुकसान का मूल्यांकन करेगा और तब जाकर कहीं आपदाग्रस्त परिवार को शायद कुछ मुआवजा मिलेगा।

टिहरी की एक गैर-सरकारी संस्था - माउंट वैली डेवलपमेंट एसोसिएशन - केदार घाटी में एक्शन ऐड  के सहयोग से कुछ राहत  कार्य कर रही है. उसके कार्यकर्ता पुरुषोत्तम थपलियाल गुप्तकाशी से करीब 15-16 किलोमीटर आगे मैखंडा गाँव का एक वाक्या बता रहे थे. गाँव में  ज़मीन व घर धंस रहे हैं सो लोग उनकी मरम्मत या ठीक कर सकें, उस पर बात हो रही थी. लोग इस पर स्वयं काम करें, आसपास से लकड़ी इकठ्ठा करें तो संस्था का रु 150 प्रतिदिन दिहाड़ी के तौर पर देने का प्रस्ताव था.  इस पर एक गाँव वाला तपाक से बोला, "मैं तुम्हे रु 250 देता हूँ, तुम ही लकड़ी ले आओ."

हो सकता है कि लकड़ी लाना इतना आसान न रहा हो या उसमे जंगलात वालों के झमेले में पड़ने की भी शंका हो, पर एक दम ही यह कह देना कि "मैं तुम्हे रु 250 देता हूँ, तुम ही लकड़ी ले आओ"…………।  

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