From a report sent by Brig. Raju Rawat, Uttarakhand Ex-Soldiers League
19 जून को गुप्तकाशी के पास एक गाँव के भूतपूर्व सैनिक, नायक हीरा सिंह और एक रिश्तेदार अपने भाई की खोज मे निकले। रामबाड़ा के रास्ते पर और रामबाड़ा में सब ख़त्म हो चुका था। जहाँ देखो शव ही शव। उन्होंने औंधे पड़े शवों को पलटा कि कहीं उनका भाई तो नहीं। शवों की श्रंखला पहाड़ी ढ़ाल पर ऊपर की ओर फैली हुई थी। और अधिकतर शव बाहरी तीर्थयात्रियों के ही थे। ज़रूर ही, स्थानीय लोग - जो पहाड़ियों के अभ्यस्त थे - ऊपर उन ढालों की ओर भागे। और बाहरी तीर्थयात्रियों ने भी वही करने की कोशिश की पर एक तो वे उस भूगोल के आदि नहीं थे, तिसपर भूख, प्यास, थकान व ठण्ड। उन्ही ढलानों पे उन्होंने अपनी अंतिम, तड़पती सांस ली। हीरा सिंह ने बताया कि सैकड़ों ही लाशें थी और हवा में उनके सडान की तेज दुर्गन्ध।
उन लाशों में अपने भाई को न पाने पर उन्होंने तब लाशों के अम्बार मे कोई जिंदा बचा हो, उन्हें ढूँढना शुरू किया। अगले कुछ दिन वे यह प्रयास करते रहे। इस बीच, उनके साथ खोज में कुछ और लोग भी जुड़ गए।
त्रासदी के लगभग एक हफ्ते बाद, किसी अन्य ढलान पर एक झाड़ी एक निश्चल पड़ा शरीर दिखा। उन्होंने उसे थोड़ा छेड़ा तो पाया वो आदमी जिंदा था। पर उसने कोई हरकत नहीं की। उसके पाँव नंगे और बुरी तरह सूजे हुए थे। और उससे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था। उन्होंने उसे ग्लूकोस का पानी दिया और कुछ बिस्कूट। उसे उठने के लिए कहा पर उससे उठा नहीं गया।
नीचे से कुछ और बचाव-कर्ताओं को बुलाया गया। स्ट्रेचर तो नहीं था, उसे उठा कर नीचे लाया गया। उसने बताया कि वो हरियाणा का है, और 20 लोगों के यात्री-दल में था। त्रासदी की रात, वो अपने अन्य साथियों के साथ ही बह गया था लेकिन पता नहीं कैसे वो बच गया। एक खच्चर वाले ने उसे बहते कीचड़ के दलदल से निकाला। उसके आलावा उसे और कुछ याद नहीं था।
उस दिन मौसम ख़राब होने से कोई हेलिकोप्टर नहीं आ सका पर दूसरे दिन उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया।
19 जून को गुप्तकाशी के पास एक गाँव के भूतपूर्व सैनिक, नायक हीरा सिंह और एक रिश्तेदार अपने भाई की खोज मे निकले। रामबाड़ा के रास्ते पर और रामबाड़ा में सब ख़त्म हो चुका था। जहाँ देखो शव ही शव। उन्होंने औंधे पड़े शवों को पलटा कि कहीं उनका भाई तो नहीं। शवों की श्रंखला पहाड़ी ढ़ाल पर ऊपर की ओर फैली हुई थी। और अधिकतर शव बाहरी तीर्थयात्रियों के ही थे। ज़रूर ही, स्थानीय लोग - जो पहाड़ियों के अभ्यस्त थे - ऊपर उन ढालों की ओर भागे। और बाहरी तीर्थयात्रियों ने भी वही करने की कोशिश की पर एक तो वे उस भूगोल के आदि नहीं थे, तिसपर भूख, प्यास, थकान व ठण्ड। उन्ही ढलानों पे उन्होंने अपनी अंतिम, तड़पती सांस ली। हीरा सिंह ने बताया कि सैकड़ों ही लाशें थी और हवा में उनके सडान की तेज दुर्गन्ध।
उन लाशों में अपने भाई को न पाने पर उन्होंने तब लाशों के अम्बार मे कोई जिंदा बचा हो, उन्हें ढूँढना शुरू किया। अगले कुछ दिन वे यह प्रयास करते रहे। इस बीच, उनके साथ खोज में कुछ और लोग भी जुड़ गए।
त्रासदी के लगभग एक हफ्ते बाद, किसी अन्य ढलान पर एक झाड़ी एक निश्चल पड़ा शरीर दिखा। उन्होंने उसे थोड़ा छेड़ा तो पाया वो आदमी जिंदा था। पर उसने कोई हरकत नहीं की। उसके पाँव नंगे और बुरी तरह सूजे हुए थे। और उससे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था। उन्होंने उसे ग्लूकोस का पानी दिया और कुछ बिस्कूट। उसे उठने के लिए कहा पर उससे उठा नहीं गया।
नीचे से कुछ और बचाव-कर्ताओं को बुलाया गया। स्ट्रेचर तो नहीं था, उसे उठा कर नीचे लाया गया। उसने बताया कि वो हरियाणा का है, और 20 लोगों के यात्री-दल में था। त्रासदी की रात, वो अपने अन्य साथियों के साथ ही बह गया था लेकिन पता नहीं कैसे वो बच गया। एक खच्चर वाले ने उसे बहते कीचड़ के दलदल से निकाला। उसके आलावा उसे और कुछ याद नहीं था।
उस दिन मौसम ख़राब होने से कोई हेलिकोप्टर नहीं आ सका पर दूसरे दिन उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया।
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