गोविन्दघाट, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग से लेकर श्रीनगर तक नदियों ने जो रौद्र रूप दिखाया है, उसके लिए हम भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। नदियाँ तो सदियों से ऐसी ही बहती आई हैं। अतीत की बाढ़ों की अनदेखी करके हमने नदियों के तट कब्ज़ा लिए हैं।
बाढ़ों के १५० सालों के इतिहास में अलकनंदा, आधा दर्जन से अधिक बार गोविन्दघाट से श्रीनगर तक तबाही मचा चुकी है। भागीरथी, मन्दाकिनी, नयार, पिंडर, मध्महेश्वर, बालगंगा, असिगंगा, जलकूर , काली ने कई बार अपना रौद्र रूप दिखाया है। लेकिन इन बाढ़ों से सबक सीखकर नदियों से दूर रहने के बजाए उनके तटों पर घर, बाज़ार, आफिस खड़े कर दिए हैं। रही-सही कसर खनन के कारोबारियों ने पूरी कर दी है। सड़क से लेकर सभी तरह माय निर्माण कार्यों से निकले मलबे के लिए नदियों को डंपिंग यार्ड बना दिया है। सारा कचरा नदियों में बेहिचक फ़ेंक रहे हैं।
बाढ़ों के १५० सालों के इतिहास में अलकनंदा, आधा दर्जन से अधिक बार गोविन्दघाट से श्रीनगर तक तबाही मचा चुकी है। भागीरथी, मन्दाकिनी, नयार, पिंडर, मध्महेश्वर, बालगंगा, असिगंगा, जलकूर , काली ने कई बार अपना रौद्र रूप दिखाया है। लेकिन इन बाढ़ों से सबक सीखकर नदियों से दूर रहने के बजाए उनके तटों पर घर, बाज़ार, आफिस खड़े कर दिए हैं। रही-सही कसर खनन के कारोबारियों ने पूरी कर दी है। सड़क से लेकर सभी तरह माय निर्माण कार्यों से निकले मलबे के लिए नदियों को डंपिंग यार्ड बना दिया है। सारा कचरा नदियों में बेहिचक फ़ेंक रहे हैं।
-हिंदुस्तान, १८ जून २०१३ से
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